इसी साल फ़रवरी महीने में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर आयोजित एक वेबिनार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा प्रणालियों में अनोखेपन और विशिष्टता के महत्व की बात करते हुए कहा था कि रक्षा क्षेत्र में अनोखापन और चौंकाने वाले तत्व तभी आ सकते हैं, जब उपकरण को आपके अपने देश में विकसित किया गया हो.
इसी वेबिनार में प्रधानमंत्री ने इस बात पर खे़द व्यक्त किया था कि हथियार ख़रीद की प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि हथियारों के आते-आते बहुत ज़्यादा समय बीत जाता है और वे पुराने पड़ जाते हैं.
इन मुद्दों से निपटने के लिए मोदी ने 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' को समाधान बताते हुए कहा था कि रक्षा बजट का लगभग 70 फ़ीसदी हिस्सा केवल स्वदेशी उद्योग के लिए रखा गया है.
पिछले कई वर्षों से भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक रहा है. हक़ीक़त ये है कि चाहे वो मिग, मिराज, जैगुआर, सुखोई और रफ़ाल जैसे लड़ाकू विमान हों या अपाची और चिनूक जैसे हेलीकॉप्टर, भारतीय सेना की रीढ़ की हड्डी ज़्यादातर उन्हीं हथियारों और उपकरणों को माना गया जो विदेशों से आयात किए गए थे.जहां पारम्परिक रूप से भारत रक्षा क्षेत्र से जुड़े सैनिक साज़ो-सामान और हथियारों की खरीद के लिए विदेशों पर निर्भर रहा है, वहीं पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत रक्षा क्षेत्र में भी उपकरणों और हथियारों को भारत में ही बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है.